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Original Stories by Author (1-10)

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी2:
तीन मित्र थे। तीनो मेधावी। 12 वी में 90%+।
तीनो ने चारबाग़ रेलवे स्टेशन पर इंजन को साक्षी मान के शर्त लगाई की आज से 15 साल बाद इसी जगह पे मिलेंगे और देखेंगे कि कौन कितना आगे बढ़ा।
पहला इंजिनीयरिंग किआ और अच्छी प्रतिष्ठित कम्पनी मे मोटी पगार पे अमेरिका में नौकरी पा गया। 
दूसरा सरकारी नौकरी के लिए लग गया और खूब मेहनत करके भारत सरकार में अधिकारी बन गया। 

तीसरे ने पहले राजधानी के अति प्रतिष्ठीत विश्वविद्यालय से कला में स्नातक किआ फिर उससे भी उच्च प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से परास्नातक करने लगा। इसी बीच स्वतंत्र चिंतन करने वाले बुद्धिजीवियों से उसका परिचय हुआ और उसने सर्वमान्य समझ के विपरीत एक दो विवादस्पद बयान दे डाले।

सुनने में आया है कि कल पहला इंजीनयर अमेरिका में नई सरकार की नई नीतियों के कारण पलायन कर अपने देश में अभियंता की नौकरी हेतु उस दूसरे वाले सरकारी अधिकारी को इंटरव्यू देकर आया है लेकिन फाइल अभी अप्रूवल के लिए उस तीसरे बुद्धिजीवी मित्र के पास गई हुई है जो एक बुद्धिजीवी पार्टी के टिकट पे सांसद बन के कैबिनेट मंत्री बन गया है।
नोट: कृपया इसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य से न जोड़ के देखे।
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कहानी 4:
तीन सरकारी बाबू थे क, ख और ग ।
क अपने साहब का बहुत बड़ा चेला था । एकदम कटप्पा माफिक । जो कहे झट से कर देता । साहब के घर का काम हो या बाहर का, शब्द मुख से निकले नहीं की वो कर देता था । पर आफिस के काम मे जरा सा भी मन नहीं लगता ।
ख अपने काम से काम रखता था और साहब को ज्यादा भाव नहीं देता था । काम से तो उसे इतना लगाव था की कहो तो 12 घंटे काम कर दे । लेकिन साहब से उसकी नहीं बनती थी , भाई स्वाभिमान बहुत था । हो भी क्यू न असाधारण प्रतिभा का धनी जो था । अपने काम मे पारंगत ।
ग एक साधारण कर्मचारी था। ठीक 10 बजे आता था और 6 बजे के बाद कभी ऑफिस मे नहीं देखा गया । साहब उसका नाम तो नहीं जानते थे लेकिन ऑफिस का ही होने के कारण शक्ल से जरूर पहचानते थे । दुआ सलाम हो भी जाती थी । काम वाम भी ठीक ठाक कर लेता था ।
खैर जब प्रमोशन की बारी आई तो 1 सीट थी प्रमोशन के लिए और इनही तीन बाबुओ मे से एक का प्रमोशन होना था । तो गेस कीजिये किसका हुआ होगा ? क, ख, या ग ??
उत्तर: जिसका सीनियरिटी लिस्ट में नाम सबसे ऊपर था। भाइयो सरकारी बाबुओ को प्रमोशन काम या सेवा से नही, सीनियोरिटी से मिलता है 
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कहानी 7:
 एक लड़की थी। एक लड़के पर बहुत मरती थी। लड़का जानता था।पर अपने ही घर के कुछ दबंगों से डरता था और उसे इग्नोर करता था। लड़की इन सब के बावजूद उसकी हर संभव मदद करती थी फिर वो चाहे हथियारों की सप्लाई हो या टेक्नोलॉजी का हस्तांतरण , वो चुपके चुपके हर संभव मदद करती थी की शायद एक दिन वो लड़का खुल के अपनी दोस्ती का इजहार कर ले। अंततः लड़के के घर में नई भाभी आई। दबंगों को इग्नोर किया। लड़के में हिम्मत आई और उसने दुनिया के सामने खुल के लड़की से अपनी प्रगाढ़ दोस्ती का इझहार किया। सुना है आज लड़का लड़की के घर गया हुआ है।
(@India and Israel relations and PM's Israel trip)

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कहानी 9:
एक बार एक सरकारी कर्मचारी को एक साधू मिल गए और उसे ज्ञान देने लगे:
साधू : बेटा अपनी कमाई का 10% दान दे दिया करो । 
कर्मचारी : पर बाबा कमाई का 10% तो सरकार एनपीएस काट लेती है । 

साधू : अरे एनपीएस काटने के बाद बची कमाई का 10 %
कर्मचारी : 10% तो सरकार इनकम टैक्स भी काट लेती है 
साधू : इनकम टैक्स काटने के बाद बची कमाई का 10%
कर्मचारी : बाबा बची हुई कमाई का 50% तो दवाई मे चला जाता है ।
साधू : क्यू सीजीएचएस है न तब काहे का खर्च
कर्मचारी: बाबा पिछली दफा जुकाम हुआ था, दिखाने गया तो उन्होने सरकारी अस्पताल मे रेफर कर दिया । वहाँ गया तो वहाँ 1 दिन तो लाइन मे लगा रहा । अगले दिन नंबर आया तो स्वाइन फ्लू हो गया । भर्ती हुआ तो आक्सीजन खत्म हो गया । अंततः प्राइवेट अस्पताल मे खुद का खर्च करके इलाज कराया और चूंकि सीजीएचएस ने प्राइवेट अस्पताल रेफर नहीं किया था तो न खर्चा मिला न मेडिकल लीव ग्रांट हुई और 2 महीने का वेतन अलग नहीं मिला। इसलिए बाबा सीजीएचएस का भरोसा नहीं । 
साधू: अरे तो उससे बची कमाई का 10%
कर्मचारी : बाबा उससे बची कमाई का आधा हिस्सा तो टमाटर खरीदने मे चला जाता है
साधू: और बाकी
कर्मचारी : बाकी बीवी के हाथ मे । 
साधू कर्मचारी की ओर अपनी ईमेल लिखा 500 का पुराना नोट बढ़ाते हुए बोला : ले बेटा जा जीले अपनी जिंदगी। जब भी दिल करे मेरा पेशा चुनने का, अपना रेस्यूम फोटो के साथ मुझे मेल कर देना बेटा । 
यह कह कर साधू आंखो मे आँसू भरे हुए वन की ओर निकाल गए ।

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कहानी 10:
किसी विभाग मे एक जनाब हुआ करते थे । बाकी सब तो ठीक था लेकिन बस कार्यस्थल गृह जनपद न होने से थोड़ा तकलीफ मे रहते थे । संयोग कुछ यूं बना की इधर उधर जुगाड़ पानी से भाई साहब का स्थानांतरण उनके गृह जनपद मे हो गया । भैया जी इस बात से इतने प्रसन्न और उत्साहित हुए की उन्होने इस एहसान के बदले विभाग को अपना 100% देने की ठानी। खूब दिल लगा कर कार्य किया, दिन रात कभी देखा भी नहीं। घर वालों को इस दौरान कभी लगा भी नहीं की भैया जी सरकारी विभाग के मातहत है । भैया जी से जब भी पुछो की मालिक इतना काम करने से तुम्हें कौन सा तमगा मिल जाएगा, प्रोन्नति इत्यादि तो अपने समय पर ही होंगी न किन्तु भैया जी का मानना था की देश सेवा से बड़ी कोई सेवा नहीं है और विभाग की सेवा देश सेवा है । बहरहाल उनकी इस सेवा भाव से उनका कुछ भला हुआ हो न हो लेकिन उनके ऊपर बैठे लोगो को काफी लाभ हुआ आखिर सबका काम जो हुआ । सीआर बढ़ी सो अलग। कालांतर मे सत्ता परिवर्तन हुआ और भैया जी का पुनः किसी दूर दराज के इलाके मे स्थानांतरण हो गया, वजह किसी दूसरे जुगाड़ वाले ने जुगाड़ लगा लिया था ।
अब भैया जी भविष्य मे देशसेवा करेंगे या नहीं ये तो नहीं पता । लेकिन "जुगाड़" और "मेहनत" मे कौन बादशाह है, इसका शायद उन्हे आभास हो गया होगा ।
PS: उपरोक्त कथा का लेना देना लगभग सभी सरकारी कर्मचारियो से है ।
---नीलेश मिश्रा

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