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Bailable Vs. Non-Bailable Warrants : Simplified (Hindi)

सबसे पहले कुछ जरुरी जानकारी :

अपराध (Crime) क्या हैं?
हर वो कार्य जो  विधि के विरुद्ध जाकर किया जाता है (Anything done against the Law)

अपराध दो तरह के होते है - 
1. जमानतीय अपराध (Bailable Crimes)
2. अजमानतीय अपराध (Non- Bailable Crimes)

जमानतीय अपराध (Bailable Crime) -  I.P.C. (Indian Penal Code) के धारा -2(a)  के अन्तर्गत वे अपराध जो प्रथम अनुसूची (First Schedule of Offences) में बताये गए है जो 3 वर्ष से कम अवधि के कारावास या केवल जुर्माने से दण्डनीय हैं,
(इन अपराधों में पुलिस स्टेशन से भी Bail मिल सकती है और गिरफ़्तारी की कोई बात ही नहीं है | कोर्ट आदेश दे तो गिरफ़्तारी हो जाएगी  )


अजमानतीय अपराध (Non-Bailable Crime) - I.P.C. धारा-2(a) के अंतर्गत वे अपराध जो मृत्यु दंड , आजीवन कारावास या 3 वर्ष और उससे अधिक के कारावास से दंडनीय है ,
(इन अपराधों में पुलिस आपको सीधे गिरफ्तार कर सकती है और Bail मजिस्ट्रेट  या कोर्ट से मिलती है )

ये सारे नियम Under-Trial Accused के लिए हैं। जो कोर्ट से दोषी सिद्ध (Convicted) हो जाते हैं उनके लिए तो भइया उच्च अदालते ही हैं जहाँ जमानत के लिए apply करना पड़ता है।   
*इसका ये अर्थ नही है कि हर जमानतीय अपराध में जमानत और हर अजमानतीय अपराध में जमानत नही मिलेगी
* जमानत एक नियम है और निरोध (Detention) उसका अपवाद है
* इसका अर्थ सिर्फ इतना समझने के लिए है जबकी जमानतीय अपराध में अपराधी जमानत की मांग अधिकार से कर सकता है

* वही दूसरी तरफ़ अपराधी अधिकार के तौर पे नही कर सकता तब जमानत मिलना या न मिलना न्यायालय के विवेक पर होता है 

नोट- अपराध शब्द अपने मे बहुत विस्तृत अर्थ संमेटे है  अपराध को कभी बढ़ावा न दे आपके आस पास अपराध हो तो उसकी तुरंत अपने निकटम पुलिस अधिकारी को सूचित करें  और  क्योंकि एक अपराध आपकी पूरी जिंदगी बदल सकता है ... जानकारी रखना हमारा अधिकार है  लेकिन उसका उपयोग जागरूक होने के लिए करे.


Article by Suparna Mishra, Advocate


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