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Original Stories by Author (83) : Daldal

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी 83: दलदल

एक प्राइमरी टीचर काबिल हो, Innovative हो और पढ़ाने के लिए Willing भी हो!! भई ये तो बहुत rare combination है और वो भी क्षेत्रफल की दृष्टि से चौथे सबसे बड़े राज्य में। पर मिस्टर उस्मानी इन तीनों गुणों से सम्पन्न युवा शिक्षक थे। बात ज्यादा दिन पुरानी नही है, तब उक्त राज्य में नकल उद्योग अपने चरमोत्कर्ष पर था। 10th, 12th और Graduation में "जुगाड़" विद्या द्वारा अकल्पनीय अंक लाकर बिना कोई परीक्षा दिए आप घर बैठे 40 हजार की सरकारी नौकरी हथिया सकते थे। ऐसे कठिन हालात मे ईमानदारी से अंक लाने वाले व्यवस्था को कोसने के अलावा कुछ कर नही सकते थे। ऐसे में अखबारों में छपी "बिना डिग्री ____ शिक्षामित्र नियुक्त हुए सरकारी शिक्षक" जैसी खबरें कइयों के लिए सीने पर सांप लोटाने जैसी थी।
इतना सब होते हुए भी उस्मानी भाई को शिक्षक बनने में सफलता मिल ही गई लेकिन पोस्टिंग सुदूर नेपाल से सटे एक जिले में मिली।
सबने राय दी "अरे कहाँ जाओगे वहां, 2000 वहीं के किसी लोकल बन्दे को दो - वो खुद पढा देगा तुम्हारे बदली, यहाँ रहकर दूसरे एग्जाम की तैयारी कर लो, सब यही तो कर रहे हैं"
लेकिन भइया भाई साहब को तो देश का भविष्य सवारने का जुनून था। उनके कानों में तनिक भी जूं न रेंगी।
स्कूल जॉइन कर लिया। नौकरी में आकर कई अनजानी सच्चाईयों से उनका सामना हुआ। उन्हें इस ज्ञान की प्राप्ति हुई कि आपको यहां अपनी खुद की तनख्वाह के लिए 6-6 महीने तक इन्तेजार करना पड़ सकता है, लेकिन अगर दफ्तर जा कर बाबू से "मिल" लो तो काम जल्दी हो सकता है। जन्मदिन पर अभिनेत्रियों को नचाने में करोड़ो लुटाने वाले राज्य की संचित निधि में स्कूल की रिक्टर स्केल पर 2 लेवल का भूकम्प सहने योग्य इमरातनुमा ढांचे की मरम्मत के लिए Fund नही था और अगर आपने लिखा पढ़ी करके ज्यादा जोर डाला तो "ज्यादा बन रहे हो" कि तल्ख टिप्पणी के साथ सस्पेंड होने का भय अलग था।
मिड डे मील के लिए ग्राम-प्रधान से फंड लेने से ज्यादा भय लगता था कि कहीं कोई बच्चा उसे खा के बीमार न पड़ जाए और बच्चों को पढ़ाने से ज्यादा कठिन था उन्हें स्कूल में जुटाना और टिकाए रखना। पर उस्मानी साहब भी जुनूनी आदमी थे। कम्प्यूटर और इंटरनेट अपने पैसों से जुटा कर बच्चों को innovative एजुकेशन देने लगे। बच्चों का पढ़ने में मन लगने लगा औऱ वो भी समय आया कि उस्मानी साहब बच्चों के favourite हो गए। गांव के लोग भी उन्हें इज्जत देने लगे। ये बात ग्राम प्रधान और कुछ अन्य प्रभावशाली लोगों को गले नही उतरी। किसी ने जा कर शिक्षा निदेशालय में शिकायत कर दी कि मास्टर साहब स्कूल में पढ़ाते नही है बल्कि बच्चों को "वो वाली फिल्म" दिखाते हैं। BSA साहब के कान भरे जा चुके थे। साहब ने छापा मारा और मास्टर साहब का कालर पकड़ लिया।
"क्यों बे बच्चों को क्या दिखाता है, साले तेरी नौकरी खा जाऊंगा।"
"सर् ये interactive class videos हैं , ये देखिए सर ये NCERT का official चैंनल है, आपको मेरी बात पर यकीन न हो तो बच्चों से पूछ लीजिए" - उस्मानी जी ने अपनी सफाई पेश की।
"साले मुझे अंग्रेजी समझाता है, ये सब Innovative content जा के किसी मदरसे में सिखाना। You are suspended in violation of State Conduct Rules section 34(2), 36  and 37. सक्सेना इनका सस्पेंशन लेटर टाइप करो और इनको रिसीव कराओ।"
और इसके बाद बारात चली गई।
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3 साल बाद
उस्मानी साहब का मैटर "बाबू" ने सॉल्व करवा दिया है। अब उस्मानी साहब देश निर्माण के दलदल से निकलकर अपने home district में खुद का केबल व्यवसाय संचालित करते हैं और समय समय पर चढ़ावा दफ्तर में पहुंचता रहता है।
2000 रुपये में उस स्कूल में पढ़ाने के लिए वहीं के 8 वी पास बन्दे और गरीब बच्चों के भविष्य - दोनों को बांध लिया गया है।

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नीलेश मिश्रा

Special Thanks to: Lalit Mohan






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