This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 15:
दो कर्मचारी थे, दोनो की नियुक्ति तिथि समान थी, और उम्र भी लगभग। पोस्टिंग समान कार्यालय में थी और कार्य भी । हालांकि एक विशेष अंतर था एक जनाब ने ब्रिटिश स्पीकिंग कोर्स नामक संस्थान से अंग्रेजी बोलना सीख रखा था और किसी नामी गिरामी मानसी कंप्यूटर कोर्स वाले से एमएस ऑफिस भी। तो जनाब से जब भी कोई रिपोर्ट मांगी जाती वो एकदम बेहतरीन लाल पीला फॉरमेट करके बाकायदा पाई चार्ट बार चार्ट में देते। दूसरे जनाब तो excel शीट सेव करने में भी छींके आने लगती। पूरा ऊपरी तबका जनाब के रिपोर्ट औऱ वाचन शैली का दीवाना था। कालांतर में नोटबन्दी का फरमान हुए और दूसरे जनाब को नोट बदलने का काम मिला। स्पीकिंग कोर्स वाले महोदय को पुरानी नई करेंसी का रिपोर्ट बनाने का कार्य मिला वो भी अखिल भारतीय स्तर पर। सुंदर रिपोर्ट बनाने के चक्कर मे 2-3 जीरो इधर उधर हो गए और सरकार अलग चली गई।
अब आप पूछेंगे की दोनों आजकल कहा है
ब्रिटिश वाले जनाब को कटे फ़टे नोटो की रिपोर्ट बनाने को कहा गया है। वही दूसरे भाई साहब परिवार सहित ऑस्ट्रेलिया घूमने गये है। अब ये न पूछना पैसा कहां से आया।
दो कर्मचारी थे, दोनो की नियुक्ति तिथि समान थी, और उम्र भी लगभग। पोस्टिंग समान कार्यालय में थी और कार्य भी । हालांकि एक विशेष अंतर था एक जनाब ने ब्रिटिश स्पीकिंग कोर्स नामक संस्थान से अंग्रेजी बोलना सीख रखा था और किसी नामी गिरामी मानसी कंप्यूटर कोर्स वाले से एमएस ऑफिस भी। तो जनाब से जब भी कोई रिपोर्ट मांगी जाती वो एकदम बेहतरीन लाल पीला फॉरमेट करके बाकायदा पाई चार्ट बार चार्ट में देते। दूसरे जनाब तो excel शीट सेव करने में भी छींके आने लगती। पूरा ऊपरी तबका जनाब के रिपोर्ट औऱ वाचन शैली का दीवाना था। कालांतर में नोटबन्दी का फरमान हुए और दूसरे जनाब को नोट बदलने का काम मिला। स्पीकिंग कोर्स वाले महोदय को पुरानी नई करेंसी का रिपोर्ट बनाने का कार्य मिला वो भी अखिल भारतीय स्तर पर। सुंदर रिपोर्ट बनाने के चक्कर मे 2-3 जीरो इधर उधर हो गए और सरकार अलग चली गई।
अब आप पूछेंगे की दोनों आजकल कहा है
ब्रिटिश वाले जनाब को कटे फ़टे नोटो की रिपोर्ट बनाने को कहा गया है। वही दूसरे भाई साहब परिवार सहित ऑस्ट्रेलिया घूमने गये है। अब ये न पूछना पैसा कहां से आया।
--नीलेश
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कहानी 16:
एक भारतीय मूल के अमेरिका मे रह रहे ख्यातिप्राप्त ब्रिटिश भौतिक्विद प्रोफेसर को गुरुत्वीय तरंगो के क्वान्टम बिहैवियर पर शोध के लिए गलती से नोबल मिल गया तो जनाब भी मिट्टी का कर्ज अदा करने के लिये भारत मे एक शैक्षिक संस्थान खोलने के उद्देश्य से सरकारी कार्यालय पहुंच आवेदन किया। वहाँ संबन्धित कर्मचारी को अपना परिचय दिया और इच्छा बताई।
कर्मचारी - प्रोफेसर साहब ये बताइये की प्रकाश वर्ष, 1 किलो ग्राम और 1 सेकंड की परिभाषा जानते है ?
प्रोफेसर- हाँ। 1 प्रकाश वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश vacuum मे 1 साल मे तय करता है, 1 Kg वो वजन है जो अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो मे रखी प्लैटिनम-इरीडियम की राड का वजन और 1 सेकंड वो समय है जिसमे सीज़ियम-133 तत्व का परमाणु 9192631770 बार vibration करता है।
कर्मचारी- गलत । प्रकाश वर्ष वो समय है जो आपकी फ़ाइल को इस कार्यालय के एक सेक्शन से दूसरे सेक्शन कों जाने मे लगेगी । एक किलोग्राम रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर द्वारा हस्ताक्षरित 2000 की नोटो का वो वजन है जिसके अर्पण करने मात्र से आपका काम 1 सेकंड मे हो जाएगा ।
प्रोफेसर साहब नोबल पुरस्कार गिरवी रख के उस कर्मचारी के यहाँ कोचिंग ले रहे है ।
--नीलेश मिश्रा
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कहानी 17:
एक लकड़हारा था। लकड़ी काटने वाला नही। दरअसल वो एक बड़ी फैक्ट्री का मैनेजर था जिसका काम था हर काम मे लकड़ी लगाना इसलिए उसे ये उपाधि मिली।
मेडिकल बिल हो, employee welfare हो या यात्रा करने का खर्च, महोदय ने नाना प्रकार के तरीके ईजाद किए हुए थे लकड़ी लगाने के। 'छुट्टी' शब्द अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए विलुप्तप्राय जीव की तरह था। लेकिन महोदय के पुण्य प्रताप भी कम नही थे। लोग बताते है कि एक बार उनका एक कर्मचारी सिर्फ़ इसलिए नही मर सका क्योंकि उन्होंने उसे मरने के लिए छुट्टी नही grant की थी।
बहरहाल एक कर्मचारी उनके पास त्यागपत्र लेके अंयत्र रोजगार प्राप्ति की सूचना लेके आया जिसे देख महोदय अचरज में पड़ गए। भाई हमारे शोषण में कौन सी कमी रह गई , लोग क्या कहेंगे, मेरा नाम और खौफ दोनो डूब जाएगा। उन्होंने उसे अपनी डंडा करने की कला का कुशल प्रयोग करके उसे न जाने पर मजबूर कर दिया। कालांतर में लकड़हारा महोदय की ख्याती से प्रभावित अमेरिका की किसी नामी कम्पनी में CEO के लिए बुलावा आया। महोदय बेहद खुश। पासपोर्ट वीजा टिकट सामान सब ready। flight के take off से 10 मिनट पहले ट्रम्प महोदय ने अमेरिका की नई आव्रजन नीति घोषित कर दी और महोदय को "अब रहने दीजिए मत आइये" का मेल आ गया।
मेडिकल बिल हो, employee welfare हो या यात्रा करने का खर्च, महोदय ने नाना प्रकार के तरीके ईजाद किए हुए थे लकड़ी लगाने के। 'छुट्टी' शब्द अधीनस्थ कर्मचारियों के लिए विलुप्तप्राय जीव की तरह था। लेकिन महोदय के पुण्य प्रताप भी कम नही थे। लोग बताते है कि एक बार उनका एक कर्मचारी सिर्फ़ इसलिए नही मर सका क्योंकि उन्होंने उसे मरने के लिए छुट्टी नही grant की थी।
बहरहाल एक कर्मचारी उनके पास त्यागपत्र लेके अंयत्र रोजगार प्राप्ति की सूचना लेके आया जिसे देख महोदय अचरज में पड़ गए। भाई हमारे शोषण में कौन सी कमी रह गई , लोग क्या कहेंगे, मेरा नाम और खौफ दोनो डूब जाएगा। उन्होंने उसे अपनी डंडा करने की कला का कुशल प्रयोग करके उसे न जाने पर मजबूर कर दिया। कालांतर में लकड़हारा महोदय की ख्याती से प्रभावित अमेरिका की किसी नामी कम्पनी में CEO के लिए बुलावा आया। महोदय बेहद खुश। पासपोर्ट वीजा टिकट सामान सब ready। flight के take off से 10 मिनट पहले ट्रम्प महोदय ने अमेरिका की नई आव्रजन नीति घोषित कर दी और महोदय को "अब रहने दीजिए मत आइये" का मेल आ गया।
Moral: हर लकड़हारे के ऊपर उनका लकड़हारा बैठा है।
--नीलेश मिश्रा
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कहानी 18:
एक आईएएस ड्रॉपआउट जनाब थे शुक्ला जी । रोमन सैनी की तरह आईएएस बनके ड्राप करने वाले नहीं , आईएएस की तैयारी करके छोडने वाले ड्रॉप आउट । उन्ही शुक्ला जी के रिश्ते मे एक त्रिपाठी जी थे, अत्यंत मेधावी । इंजीन्यरिंग मे दाखिला हुआ, अंको का तो पता नहीं लेकिन प्लेसमेंट अच्छी कंपनी मे हो गया । फिर शुक्ला जी मिल गए।
शुक्ल जी - "अमा मियां इंजीन्यरिंग तो हमारे गाँव का नाऊ भी किए हुए है, कहीं सरकारी नौकरी वगरह करते तो समझ मे आता । प्राइवेट नौकरी भी कोई नौकरी है ।" त्रिपाठी जी को बात लग गई । छोड़ दिए । तैयारी किए, पंचायती राज विभाग मे बाबू की नौकरी लग गई ।
शुक्ला जी - "अमा मियां इंजीन्यरिंग करके बाबू की नौकरी, छी छी छी।" त्रिपाठी को बात लग गई ।
शुक्ल जी - "अमा मियां इंजीन्यरिंग तो हमारे गाँव का नाऊ भी किए हुए है, कहीं सरकारी नौकरी वगरह करते तो समझ मे आता । प्राइवेट नौकरी भी कोई नौकरी है ।" त्रिपाठी जी को बात लग गई । छोड़ दिए । तैयारी किए, पंचायती राज विभाग मे बाबू की नौकरी लग गई ।
शुक्ला जी - "अमा मियां इंजीन्यरिंग करके बाबू की नौकरी, छी छी छी।" त्रिपाठी को बात लग गई ।
MadeEasy जॉइन किए । BHEL मे असिस्टेंट इंजीनियर बन गए । फिर शुक्ला जी मिल गए ।
शुक्ला जी - "अमा मियां ये इंजीनियर तो कोई भी बन जाता है, अभी ट्रैफिक वाला पकड़ेगा तो इंजीनियर का आई कार्ड नहीं चलेगा । मियां तुम तो होशियार हो आईएएस वागरह क्यूँ नहीं बनते ।" त्रिपाठी जी फिर त्यागपत्र दिये और चल दिये दिल्ली । दो साल मे 3-4 लाख खर्च हो गए, 10 रुपए का लईया चना लेने मे भी संकोच करने लगे। बहरहाल तीसरे अटैम्प्ट मे आईएएस मे बाउंडरी लाइन पे आईएएस बन गए और तमिलनाडु मे पोस्टिंग मिली । शुक्ला जी फिर राहू बन के फोन किए "अमा मियां तमिलनाडु मे आईएएस बन के क्या कर लोगे ।" त्रिपाठी जी 3-4 "फ़ाइल" पे "साइन" करके किसी तरह से उत्तर प्रदेश कैडर अलोट कराए और शुक्ला जी को सीना चौड़ा करके मिठाई खिलाने गए । शुक्ला जी पुनः मुंह बिचकाते हुए बोले "अमा मियां ये आईएएस सरकारी नौकरी वगरह मे कुछ नहीं रखा है । अपने यादव जी का लड़का 5000 रुपए मे किसी कंपनी मे काम करना चालू किया था 5 साल मे बेल्जियम अमेरिका जापान सब घूम के गोरी छोरी के साथ 3 लाख रुपया महिना कमा रहा है आया है और हर महीने मरीशस गोवा थाईलैंड घूम के आता है ।" त्रिपाठी जी ने तुरंत थानेदार को बुलाया और शुक्ला जी की गरिमामई सेवा कराई।
शुक्ला जी (दर्द से कराहते हुए )- "अरे बेटा क्यू??"
त्रिपाठी जी - "अमाँ मियां तुम्हारे चक्कर मे ओवरएज हो गया, दिमाग का दही हो गया, अमेरिका छोड़ो अमेठी तक नहीं घूमने जा पाया, लोग मुझे ड्रॉपआउट इंजीनीयर कहके चिढ़ाते है और तुम यादव जी के गुणगान गा रहे हो"
शुक्ला जी - "अमा मियां ये इंजीनियर तो कोई भी बन जाता है, अभी ट्रैफिक वाला पकड़ेगा तो इंजीनियर का आई कार्ड नहीं चलेगा । मियां तुम तो होशियार हो आईएएस वागरह क्यूँ नहीं बनते ।" त्रिपाठी जी फिर त्यागपत्र दिये और चल दिये दिल्ली । दो साल मे 3-4 लाख खर्च हो गए, 10 रुपए का लईया चना लेने मे भी संकोच करने लगे। बहरहाल तीसरे अटैम्प्ट मे आईएएस मे बाउंडरी लाइन पे आईएएस बन गए और तमिलनाडु मे पोस्टिंग मिली । शुक्ला जी फिर राहू बन के फोन किए "अमा मियां तमिलनाडु मे आईएएस बन के क्या कर लोगे ।" त्रिपाठी जी 3-4 "फ़ाइल" पे "साइन" करके किसी तरह से उत्तर प्रदेश कैडर अलोट कराए और शुक्ला जी को सीना चौड़ा करके मिठाई खिलाने गए । शुक्ला जी पुनः मुंह बिचकाते हुए बोले "अमा मियां ये आईएएस सरकारी नौकरी वगरह मे कुछ नहीं रखा है । अपने यादव जी का लड़का 5000 रुपए मे किसी कंपनी मे काम करना चालू किया था 5 साल मे बेल्जियम अमेरिका जापान सब घूम के गोरी छोरी के साथ 3 लाख रुपया महिना कमा रहा है आया है और हर महीने मरीशस गोवा थाईलैंड घूम के आता है ।" त्रिपाठी जी ने तुरंत थानेदार को बुलाया और शुक्ला जी की गरिमामई सेवा कराई।
शुक्ला जी (दर्द से कराहते हुए )- "अरे बेटा क्यू??"
त्रिपाठी जी - "अमाँ मियां तुम्हारे चक्कर मे ओवरएज हो गया, दिमाग का दही हो गया, अमेरिका छोड़ो अमेठी तक नहीं घूमने जा पाया, लोग मुझे ड्रॉपआउट इंजीनीयर कहके चिढ़ाते है और तुम यादव जी के गुणगान गा रहे हो"
शिक्षा - खुद ले ले ।
--नीलेश मिश्रा
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