This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 19:
देश मे बुलेट ट्रेन चलने का प्रस्ताव पारित हुआ। देश का अपनी तरह का पहला और बहुत बड़ा प्रोजेक्ट था तो जाहिर सी बात है कि विदेशी इंजीनियर, कम्पनी, तकनीक, धन इत्यादि का ही जुगाड़ होना था क्योंकि गिरे हुए पुलों की वायरल फ़ोटो देसी इंजीनयरो की, हजारो करोड़ ठगने वाली सत्यम जैसी देसी कंपनियो की, कटिया मार के लाइट जलाने की देसी जुगाड़ तकनीक वालो की और नोटबन्दी में जेब भरने वाले देसी वित्तीय संस्थानों की साख तो वैसे ही खराब थी।
सो देश के नीति निर्माताओं ने जापान जैसे देशों से धन और तकनीक, फ्रांस जर्मनी इत्यादि देशो से उपकरण इत्यादि चीजो की व्यवस्था कर ली।
अब यक्ष प्रश्न ये खड़ा हुआ कि चलाई कहाँ जाए। तो किसी परम ज्ञानी सज्जन ने दिल्ली से पटना का सुझाव दिया जो देश के व्यस्ततम मार्गो में शुमार है और जो तत्कालीन विधानसभा चुनावों की दृष्टि से भी आकर्षक था क्योंकि एक साल में बिहार फिर यूपी में चुनाव थे।
लेकिन रुट फाइनल होने से पहले एक कंप्यूटर में सिमुलेशन प्रोग्राम चलाया गया जिसमे रुट पे पड़ने वाले भूगोल, इतिहास , राजनीति, लोगो का व्यवहार इत्यादि फैक्टर डाल के ये जानने की कोशिश की गई कि ये सफल होगा?
कंप्यूटर बिहार विधानसभा के परिणाम आने वाले दिन फुंक गया लेकिन जाते जाते परिणाम बताता गया कि किस तरह बुलेट ट्रेन की पटरियों पर स्वच्छ भारत अभियान और शौचालय बनाने के पैसे बचाने का कार्यक्रम जोरो पे चल रहा है। 3000 यात्रियों की capacity वाले बुलेट ट्रेन में 30000 लोग छत पे और 500 लोग ड्राइवर के केबिन में बिना टिकट लिए यात्रा कर रहे है। किसी ने अफवाह फैला रखी है की चूंकि ट्रैन चुम्बक की सहायता से हवा में बिना पटरी छुए चलती है तो लोग पटरी उखाड़ के घर मे पंखा टांगने का काम ले रहे है। बुलेट ट्रेन के रूट के आस पास बिल्डर्स खेत मे प्लाट काट काट के बेच रहे है। बुलेट ट्रेन के हर दिन का खर्चा निकलने के लिए देश को भूटान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश को दिया कर्ज जबरदस्ती वसूलना पड़ रहा है और इसी बीच किसी का घर टूंडला के आउटर पर पड़ने के कारण 600 kmh की रफ्तार से चलती ट्रेन में चैन पुलिंग कर दी है और ट्रेन के जो परखच्चे उड़े की कम्प्यूटर भी कैलकुलेट नही कर पाया औऱ फुंक गया।
थक हार कर गुजरात और महाराष्ट्र के बीच चलाई जाएगी फाइनली।
सो देश के नीति निर्माताओं ने जापान जैसे देशों से धन और तकनीक, फ्रांस जर्मनी इत्यादि देशो से उपकरण इत्यादि चीजो की व्यवस्था कर ली।
अब यक्ष प्रश्न ये खड़ा हुआ कि चलाई कहाँ जाए। तो किसी परम ज्ञानी सज्जन ने दिल्ली से पटना का सुझाव दिया जो देश के व्यस्ततम मार्गो में शुमार है और जो तत्कालीन विधानसभा चुनावों की दृष्टि से भी आकर्षक था क्योंकि एक साल में बिहार फिर यूपी में चुनाव थे।
लेकिन रुट फाइनल होने से पहले एक कंप्यूटर में सिमुलेशन प्रोग्राम चलाया गया जिसमे रुट पे पड़ने वाले भूगोल, इतिहास , राजनीति, लोगो का व्यवहार इत्यादि फैक्टर डाल के ये जानने की कोशिश की गई कि ये सफल होगा?
कंप्यूटर बिहार विधानसभा के परिणाम आने वाले दिन फुंक गया लेकिन जाते जाते परिणाम बताता गया कि किस तरह बुलेट ट्रेन की पटरियों पर स्वच्छ भारत अभियान और शौचालय बनाने के पैसे बचाने का कार्यक्रम जोरो पे चल रहा है। 3000 यात्रियों की capacity वाले बुलेट ट्रेन में 30000 लोग छत पे और 500 लोग ड्राइवर के केबिन में बिना टिकट लिए यात्रा कर रहे है। किसी ने अफवाह फैला रखी है की चूंकि ट्रैन चुम्बक की सहायता से हवा में बिना पटरी छुए चलती है तो लोग पटरी उखाड़ के घर मे पंखा टांगने का काम ले रहे है। बुलेट ट्रेन के रूट के आस पास बिल्डर्स खेत मे प्लाट काट काट के बेच रहे है। बुलेट ट्रेन के हर दिन का खर्चा निकलने के लिए देश को भूटान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश को दिया कर्ज जबरदस्ती वसूलना पड़ रहा है और इसी बीच किसी का घर टूंडला के आउटर पर पड़ने के कारण 600 kmh की रफ्तार से चलती ट्रेन में चैन पुलिंग कर दी है और ट्रेन के जो परखच्चे उड़े की कम्प्यूटर भी कैलकुलेट नही कर पाया औऱ फुंक गया।
थक हार कर गुजरात और महाराष्ट्र के बीच चलाई जाएगी फाइनली।
तो कहने का तातपर्य ये है कि बुलेट ट्रेन का यूपी बिहार रुट पे न चलने के पीछे केंद्रीय सत्ताधारी पार्टी का बिहार चुनाव हारना कारण नही है।
-नीलेश मिश्रा
(कहानी का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन है)
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कहानी 20:
एक समय की बात है, एक अत्यंत विद्वान सुहृदय लोकसेवक महोदय को सरकार ने एक नई पहल के अनुरूप एक नया विभाग बना कर पूर्ण स्वायत्ता देते हुए सभी निर्णय लेने हेतु स्वतंत्रता प्रदान की। महोदय अत्यंत उत्साही व नारीवादी व्यक्ति थे। अतः संविधान के अनुच्छेद 38, 39 व 42 को ध्यान में रखते हुए 50% सीटें महिलाओ हेतु आरक्षित कर के नियुक्ति प्रारम्भ की। अब चूंकि महिला वर्ग वैसे भी परीक्षाओ में उम्दा प्रदर्शन करता है, सो उनकी संख्या निर्धारित सीटों से ज्यादा ही रही । खैर लोकसेवक महोदय की ख्याति पूरे देश मे चर्चित हुई और महोदय का सीना भी 57" का हो गया। बहरहाल पहले ही दिन से इस विशिष्ट वर्ग के देर से आने और जल्दी जाने का सिलसिला शुरू हो गया, कई बार कार्य अधिक होने के बावजूद इस विशिष्ट वर्ग को तो कोई फर्क नही पड़ा, अलबत्ता पुरुष कर्मचारियों की पीड़ा बढ़ती गई क्योंकि उन्हें विशिष्ट समूह का भी कार्य भार झेलना पड़ता। ऊपर से आये दिन EL, मेडिकल, मैटरनिटी लीव, चाइल्ड केअर लीव, व्हाट्सएप्प लीव इत्यादि के कारण पुरुष कर्मचारियों को 337% ज्यादा कार्य करने हेतु मजबूर होना पड़ा। असंतोष की लहर फैल गई । लोकसेवक महोदय के पास शिकायतों का अंबार लगने लगा। महोदय ने समूह की क्लास ली और हिदायत दी कि काम सुचारू रूप से चलाया जाए। अगले ही दिन महोदय पर 294, 354 और 509 IPC लगी। महोदय तो काम से गये, सरकार भी सतर्क हो गई और विभाग भंग करके कर्मचारियों का समायोजन अन्य विभागों में कर दिया।
बहरहाल इस कहानी का लेखक फरार है और सुनने में आया है कि महिला मुक्ति मोर्चा वालो ने लेखक का नाम बताने वाले पर उतना ही इनाम रखा है जितना दिल्ली के मुख्यमंत्री जी ने किसी नामी वकील को मानहानि केस लड़ने के लिए फीस दी थी।
--अज्ञात
बहरहाल इस कहानी का लेखक फरार है और सुनने में आया है कि महिला मुक्ति मोर्चा वालो ने लेखक का नाम बताने वाले पर उतना ही इनाम रखा है जितना दिल्ली के मुख्यमंत्री जी ने किसी नामी वकील को मानहानि केस लड़ने के लिए फीस दी थी।
--अज्ञात
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