विक्रम मियां बहुत मिलनसार कर्मचारी थे। काम करने में औसत दर्जे के भले थे पर उनके छोटे से कार्यकाल मे शायद ही किसी बॉस से उनकी न बनी हो। 4 बार सर बोले बिना उनकी बात खत्म होते किसी ने नही देखा था। अधिकारी के सामने "न" बोलना उनके संस्कारो में ही नही था। उनके तो खर्राटे भी "साहब साहब" आवाज करते थे। वही दूसरी ओर उन्ही के कार्यालय में नवनियुक्त झगड़ू प्रसाद भी थे जो होम पोस्टिंग के चक्कर में कोई मलाईदार विभाग की नौकरी छोड़ के आये थे। तो आज भी वही ऐठन बाकि थी। काबिलियत की कोई कमी नही थी लेकिन अधिकारियो की गुलामी मंजूर नही थी, आखिर किसी से कम कहा थे। बहरहाल दोनों उच्च सेवा परीक्षाओ की तैयारी कर रहे थे बस एक अदद छुट्टी की तलाश में थे।
एक दिन विक्रम मियां ने साहब के सामने अपनी इच्छा वर्णित की। साहब ने उपाय सुझाया। विक्रम मियां गये और झगड़ू प्रसाद को कार्यालय में सबके सामने 2 कंटाप जड़ दिये। हुई कम्प्लेन। विक्रम मियां ससपेंड हो गए। और उन्होंने अलीगंज वाली नामी गिरामी कोचिंग ज्वाइन कर ली। वही स्टाफ की कमी के कारण झगड़ू भैया को Sunday की CL भी मिलना बन्द हो गई। एक साल के अंदर पूरी तैयारी के बाद विक्रम मियां की उच्च सेवा परीक्षा निकल गई। विक्रम मियां ने लिखित में झगड़ू प्रसाद से माफ़ी मांग ली और साहब ने झगड़ू प्रसाद को समझा बुझा कर कम्प्लेन वापस लिवा कर विक्रम मियां का सस्पेंसन Revoke कर दिया।
आज 5 साल बाद विक्रम मियां उसी कार्यालय में साहब है और झगड़ू प्रसाद आजकल चापलूसी की कोचिंग कर रहे है।
एक दिन विक्रम मियां ने साहब के सामने अपनी इच्छा वर्णित की। साहब ने उपाय सुझाया। विक्रम मियां गये और झगड़ू प्रसाद को कार्यालय में सबके सामने 2 कंटाप जड़ दिये। हुई कम्प्लेन। विक्रम मियां ससपेंड हो गए। और उन्होंने अलीगंज वाली नामी गिरामी कोचिंग ज्वाइन कर ली। वही स्टाफ की कमी के कारण झगड़ू भैया को Sunday की CL भी मिलना बन्द हो गई। एक साल के अंदर पूरी तैयारी के बाद विक्रम मियां की उच्च सेवा परीक्षा निकल गई। विक्रम मियां ने लिखित में झगड़ू प्रसाद से माफ़ी मांग ली और साहब ने झगड़ू प्रसाद को समझा बुझा कर कम्प्लेन वापस लिवा कर विक्रम मियां का सस्पेंसन Revoke कर दिया।
आज 5 साल बाद विक्रम मियां उसी कार्यालय में साहब है और झगड़ू प्रसाद आजकल चापलूसी की कोचिंग कर रहे है।
-नीलेश मिश्रा
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कहानी 27:
गोस्वामी साहब मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर साइंस में स्नातक करके अमेरिका की प्रतिष्ठित Sun Microsystems कम्पनी में अच्छा खासा कमा रहे थे। बहरहाल परिवार की इंडियन बहू की असीम इच्छानुपालन में गोस्वामी साहब उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर पहुंचे जहाँ पहले ही दिन भाई साहब को wrong side से आ रही काला चश्माधारी मैडम जिनकी स्कूटी के पीछे Advocate और आगे छात्रसंघ नेता की बहन लिखा था, ठोक के भारतीय चिकित्सा विभाग के दर्शन सुलभ करवा दिए। खैर काफी जद्दोजहद के बाद गोस्वामी साहब को एक कन्या पसन्द आई लेकिन उसके घर वालो ने शर्त रख दी कि लड़का सरकारी नौकरी वाला होगा तभी चलेगा और प्राइवेट हुआ भी तो Infosys या TCS के अलावा कोई नही चलेगा। खैर लड़की पसन्द आ गई थी तो गोस्वामी साहब इसके लिए भी तैयार हो गए, आखिर विश्व की टॉप यूनिवर्सिटी के प्रोडक्ट थे। उस समय समीक्षा अधिकारी का फार्म आया हुआ था, भर दिए, परीक्षा में कस्तूरबा गांधी के ताऊ का नाम और 1939 में रतन टाटा ने कोन सी टॉफी खाई थी जैसे प्रश्नों को देख के उनकी भी सांसे अटक गई। खैर जैसे तैसे परीक्षा निकल गई और सेलेक्ट भी हो गए पर document वेरिफिकेशन के दौरान बाहर कर दिए गए क्योंकि उनके पास CCC सर्टिफिकेट नही था । इसी बीच SSC-CGL भी दिए, पर उनके तोते उड़ गए जब पता चला कटऑफ 600/600 गई है। प्यार सच्चा था इसलिए TCS और Infosys में भी Apply किया लेकिन उनकी उम्र थी 27 औऱ experience मांगा जाता था 30 साल का, तो वहां भी नही हुआ। एक दिन दिल बहलाने को मूवी देखने गए तो करणी सेना का शिकार हो गए। इससे पहले की बजरंग दल वाले पीटते गोस्वामी साहब अमेरिका भाग गए।
आज गोस्वामी साहब Indian News Channel लगा के गणतन्त्र दिवस का हजारो मील दूर बैठ के लुत्फ उठा रहे है और धन्यभाग मना रहे है की वो अब वहां नही है।
आज गोस्वामी साहब Indian News Channel लगा के गणतन्त्र दिवस का हजारो मील दूर बैठ के लुत्फ उठा रहे है और धन्यभाग मना रहे है की वो अब वहां नही है।
जय हिंद।
--नीलेश मिश्रा
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कहानी 28:
मिस्टर गर्ग एक उच्च शिक्षा प्राप्त सज्जन थे जो किसी भारतीय MNC में बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर कार्य कर रहे थे और शीघ्र ही कम्पनी पर्मानेंट बेसिस पर उन्हें जर्मनी शिफ्ट करने जा रही थी कि तभी एक दिन उन्होंने एक राष्ट्रवादी दल के ख्याति प्राप्त नेता जो फिलहाल विपक्ष में थे और राष्ट्रवादी एजेंडा लेकर आगामी चुनाओ की तैयारी में कूदे थे, के भाषण सुनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ जो Brain-Drain को लेकर युवाओ से देश मे रहकर ही अपने कौशल और प्रतिभा से राष्ट्रनिर्माण जैसे भारी भरकम शब्दो के प्रयोग से, उन्हें संदेश दे रहे थे कि "इसीलिए हमारा देश पीछे है"।
बाकियों का पता नही लेकिन मिस्टर गर्ग इतना प्रभावित हुए की विदेश जाने के अवसर को त्याग कर भारतीय रेल के किसी टिकट वाली एप्लीकेशन का विभाग जॉइन कर लिए। वहां उन्होंने पाया कि विभागीय सॉफ्टवेयर में कई खामियां थी और विभाग का काम अयोग्य व अकुशल कम्पनियो को आउटसोर्स हो रहा है जिसकी डिटेल्ड रिपोर्ट उन्होंने विभागाध्यक्ष को देते हुए उनके ध्यानाकर्षण की चेष्टा की। किन्तु अगले दिन भाई साहब को 2 मिनट देर से आने के लिए Dies-non कर दिया गया। देश सेवा का प्रण लिए थे इसलिए सारे Bugs भी खुद ही दूर करके error फ्री करने की कोशिश की लेकिन कुछ लोगो के "विशेष हितों" की वजह से Deploy नही करा पाए। कम्पनियो की शिकायत का कोई फायदा नही था क्योंकि सभी कंपनियों के साथ किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधियों के स्वार्थ जुड़े थे। मन खिन्न हुआ तो उच्च सेवाओ के लिए प्रयास किया और पहुँच गए देश की प्रतिष्ठित अन्वेषण एजेंसी में बतौर प्रोग्रामर। खैर 5 साल बीतने के बाद भी न रुतबा बढा न पद। रही बात देशसेवा की, तो उन्हें अपनी स्थिति सिर्फ ड्राफ्ट मैंन की लगी क्योंकि सारे फैसले तो ऊपर होते थे और सारे महत्त्वपूर्ण काम वही "पसंदीदा" आउटसोर्स कम्पनियो को मिलते थे। मनुष्य तो जन्म से महत्वकांक्षी होता है। एक बार चाचा जी को अपने किसी प्रोग्राम से तत्काल का टिकट दिला दिया। चाचा जी ने उसे धंधा बना लिया। और उन्हें भी अपना हिस्सा मिलने लगा। कालान्तर में राष्ट्रवादी सरकार आ गई। और चाचा जी के माध्यम से उसी अन्वेषण एजेंसी ने उन्हें , TV पे न्यूज देखते हुए, अपने पुराने विभाग के सॉफ्टवेयर के उन्ही खामियों का फायदा उठाने के लिए पकड़ लिया जिसको वो बार बार सही करवाने की आवाज उठा चुके थे। और पीछे TV में वही राष्ट्रवादी नेता के भाषण के अंश सुनाई दे रहे थे "इसीलिए हमारा देश पीछे है"।
बाकियों का पता नही लेकिन मिस्टर गर्ग इतना प्रभावित हुए की विदेश जाने के अवसर को त्याग कर भारतीय रेल के किसी टिकट वाली एप्लीकेशन का विभाग जॉइन कर लिए। वहां उन्होंने पाया कि विभागीय सॉफ्टवेयर में कई खामियां थी और विभाग का काम अयोग्य व अकुशल कम्पनियो को आउटसोर्स हो रहा है जिसकी डिटेल्ड रिपोर्ट उन्होंने विभागाध्यक्ष को देते हुए उनके ध्यानाकर्षण की चेष्टा की। किन्तु अगले दिन भाई साहब को 2 मिनट देर से आने के लिए Dies-non कर दिया गया। देश सेवा का प्रण लिए थे इसलिए सारे Bugs भी खुद ही दूर करके error फ्री करने की कोशिश की लेकिन कुछ लोगो के "विशेष हितों" की वजह से Deploy नही करा पाए। कम्पनियो की शिकायत का कोई फायदा नही था क्योंकि सभी कंपनियों के साथ किसी अधिकारी या जनप्रतिनिधियों के स्वार्थ जुड़े थे। मन खिन्न हुआ तो उच्च सेवाओ के लिए प्रयास किया और पहुँच गए देश की प्रतिष्ठित अन्वेषण एजेंसी में बतौर प्रोग्रामर। खैर 5 साल बीतने के बाद भी न रुतबा बढा न पद। रही बात देशसेवा की, तो उन्हें अपनी स्थिति सिर्फ ड्राफ्ट मैंन की लगी क्योंकि सारे फैसले तो ऊपर होते थे और सारे महत्त्वपूर्ण काम वही "पसंदीदा" आउटसोर्स कम्पनियो को मिलते थे। मनुष्य तो जन्म से महत्वकांक्षी होता है। एक बार चाचा जी को अपने किसी प्रोग्राम से तत्काल का टिकट दिला दिया। चाचा जी ने उसे धंधा बना लिया। और उन्हें भी अपना हिस्सा मिलने लगा। कालान्तर में राष्ट्रवादी सरकार आ गई। और चाचा जी के माध्यम से उसी अन्वेषण एजेंसी ने उन्हें , TV पे न्यूज देखते हुए, अपने पुराने विभाग के सॉफ्टवेयर के उन्ही खामियों का फायदा उठाने के लिए पकड़ लिया जिसको वो बार बार सही करवाने की आवाज उठा चुके थे। और पीछे TV में वही राष्ट्रवादी नेता के भाषण के अंश सुनाई दे रहे थे "इसीलिए हमारा देश पीछे है"।
(P.S. No matter Mr. Garg is a Villain for the Government, for programmers he would always be a Hero)
--नीलेश मिश्रा
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