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Original Stories by Author (95): Half Century of Love

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी 95: प्यार का अर्धशतक

हाँ उस दिन कोई Contest ही था जब मैं उससे पहली बार मिला था इलाहाबाद के अपने कॉलेज में। तब मुझे काफी गुमान था इस बात का कि मैं NIT में हूँ और वो यूपी के किसी चंकी पांडे छाप कालेज में। पर भाई साहब वो बन्दा- हमारे ही कालेज में आकर हमारे यहां की ही एक टॉप क्लास हीरोइन को पटा ले गया। साला जिस लड़की से मेरी बात तक करने में फटती थी वो लड़की उससे दांत चमकाकर बातें किये जा रही थी। कसम से ऐसी फीलिंग आ रही थी जैसे पाकिस्तान का कोई क्रिकेटर इंडियन टेनिस प्लेयर को पटा ले गया हो। उस दिन से ही उसकी Bad Boy की इमेज मेरे दिमाग मे बन गई थी जो इंडियन ट्रेडिशनल सोच के अनुसार जिंदगी में कुछ नही कर पाते। खैर, फिर मेरी एक MNC में नौकरी लग गई, कुछ समय की भी, फिर मंदी का दौर चला, जॉब मार्केट की अस्थिर हालत देख सरकारी क्षेत्र में जाने का फैसला किया, एग्जाम निकाला और ये क्या... मैं जिस दिन विभाग में जॉइन करने पहुंचा वो Bad Boy भी मेरे साथ Document Verify करवा रहा था। वो मुझे नही पहचानता था पर फिर भी उसने मुझे देख कर smile के साथ Greet किया, मैंने भी Hi कहा पर कसम से, मैं उससे बिल्कुल दूर रहना चाहता था। किस्मत का खेल देखिए, सरकारी क्वार्टर अलॉट होने से पहले हम दोनों को गेस्ट हाउस के एक ही रूम में Temporary Stay दिया गया जहां हमे आने वाले 1 महीने साथ ही रहना था। शुरू शुरू में मैं उससे वार्तालाप Avoid ही करता था पर एक ही रूम में कब तक आप छुप के रह सकते हैं। फिर शुरू हुआ सिलसिला बातों का, मैं उसे 10 बात बताता वो मुझे 30, उसके पास बहुत सी बातें थीं। कभी कभी लगता था मैं साला पढ़ाई लिखाई में ही घुसा रह गया और जिंदगी के मजे नही लिए। वो कभी मुझे अपने भूटान, लद्दाख ट्रिप के बारे में बताता तो कभी अपनी डॉक्टर, lawyer, Female Gym Trainer, रिसर्च स्कॉलर इत्यादि महिला मित्रों के साथ बिताए यादगार लम्हों के बारे में। साला मेरी ले दे के पूरे लाइफटाइम में एक ही मोहतरमा किसी तरह पट सकी थी और ये तो साक्षात कामदेव का पुत्र मालूम पड़ता था। ये उसकी तीसरी सरकारी नौकरी थी। उसने बताया कि कैसे वो एक गधा था, फिर एक बेहतरीन लड़की के प्यार में पड़ा, फिर दिल टूटा और फिर मेहनत करते करते उसका ज्ञान Evolve हुआ। जैसे जैसे मैं उसको और उसके बारे में जानता गया, मेरे दिल मे उसके लिए इज्जत बढ़ती चली गई। उसने मेरे कई भ्रम तोड़े। उसने मुझे लड़कियों को पटाने के कई टॉप सीक्रेट नुस्खे बताए। बेशक वो दिलफेंक आशिक था पर वो लड़कियों की इज्जत करता था और उसका मानना था कि लड़कियों को भी अपनी जिंदगी अपनी मर्जी से जीने का उतना ही हक है जितना लड़को को अपनी। उसका बौद्धिक लेवल अच्छा और निष्पक्ष था। UPSC की तैयारी करने की वजह से समसामयिक मुद्दों पर उसकी गहरी समझ थी। हमारी दोस्ती प्रगाढ़ होती गई। वो दयालु, बेबाक और निर्भीक था और यही Qualities उसे बाकी सारे सहकर्मियों से अलग करती थी। लेकिन साला उसकी आशिकी उसका पीछा छोड़ने से इनकार कर चुकी थी। और ऐसे में Tinder के आविष्कार ने तो चार चांद लगा दिए उसकी इस काबिलियत पर। जाति, धर्म, रंग, रूप किसी मे भेद नही करता था वो - हर टाइप की कन्याएं उसकी प्रेम सूची में शामिल थी। मेरे सामने ही साथ रहते रहते उसने प्यार का अर्धशतक भी पूरा कर लिया था। इन सबके चक्कर मे उसका UPSC पीछे रह गया। एक जमाने मे दो दो मेंस लिखा लड़का अब स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन का प्री भी नही निकाल पा रहा था। मैं उससे कहा करता था कि ये सब भौकाल मारने और भौतिक सुख के लिए तो अच्छा है पर कब तक। और इसीलिए उसे Many to One का कांसेप्ट त्याग कर One to One का कांसेप्ट अपना लेना चाहिए ताकि चित्त स्थिर रह सके और आंतरिक संतोष की प्राप्ति हो। वो इन चीजों से कहीं ऊपर जाने के लिए बना था और ये सिर्फ उसका रास्ता रोक रही थीं। एक सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है और एक असफल के पीछे कई स्त्रियों का। कालांतर में मैंने दूसरा विभाग जॉइन कर लिया पर आज भी हमारी दोस्ती उसी तरह जिंदादिल है। काफी याद आती है उसकी अब। मेरी दिली इच्छा है कि वो ये सब त्याग कर प्रशासनिक पद पर जाए इसलिए नही की वो मेरा अच्छा दोस्त है या बहुत टैलेंटेड है, बल्कि इसलिए कि उस जैसे अच्छे इंसान की वहां जरूरत है जहाँ राष्ट्र निर्माण की नीतियां बनती हैं।
--नीलेश मिश्रा






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