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Original Stories by Author (99): Fourth Round Table Conference

This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra

कहानी 99: चतुर्थ गोल मेज सम्मेलन
एक बार सभी वायरसों का गोल मेंज सम्मेलन चल रहा था। सम्मेलन की अध्यक्षता वायसराय HIV साहब कर रहे थे। सम्मेलन में हिमालया की छोटी बोतल सबके सामने सजी हुई थी। डरे सहमे बैक्टीरिया गण चाय और बिस्किट का प्लेट लिए हुए वेटर का काम कर रहे थे और बार बार अध्यक्ष महोदय के ठीक बगल में विराजमान बैक्टीरियोफेज वायरस से आंखें चुराते हुए घूम रहे थे।
सम्मेलन के दौरान हर कोई अपनी अपनी शेखी बघार रहा था। जहां एक ओर ईबोला वायरस छाती पीट पीट के बोल रहा था - "मेरी बराबरी साला कौन करेगा, पूरे अफ्रीका को मैंने खून के आंसू रुलाएं हैं।" वहीं दूसरी ओर सार्स, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू अपना दंभ भर रहे थे -"अबे तू अफ्रीका की बात करता है, साले हमने पूरी दुनिया का कागज फाड़ के रख दिया।"
तब तक डेंगू और मलेरिया के वायरस ने कहा - "देखो भाई तुम लोग पूरी दुनिया में चाहे जितना आतंक मचा लो पर तुम्हारी दाल इंडिया में नहीं गलने वाली।"
"क्या? क्यों?"- आश्चर्य मिश्रित स्वर में सभी ने पूछा।
"एक्सपीरिएंस भाई साहब एक्सपीरिएंस। पिछले 100 सालों से हम वहां अपना भौकाल जमाने की कोशिश कर रहे हैं। लोग मरते जरूर हैं पर हमे वो ट्रीटमेंट नहीं मिलता जो बाकी वायरसों को पूरी दुनिया में मिलता है। साला टैलेंट की कोई कद्र ही नहीं है इस देश में।"
समस्त जनसभा में शांति छा गई। फिर अध्यक्ष महोदय ने प्रस्ताव रखा कि इंडिया में भी अपना परचम लहराना मांगता है। इंडिया को हमे वाजिब ट्रीटमेंट देना ही होगा। आखिर हम इतनी मेहनत करते हैं लोगों को इनफेक्ट करने के लिए। आमसभा में इस बात पर सहमति बनी कि कोरोना वायरस को इस काम की जिम्मेदारी सौंपी जाए जो वहां जाकर वायरस बिरादरी का नाम रोशन कर सके। प्रस्ताव ध्वनिमत से पारित हुआ। दही चीनी खा कर कोरॉना वायरस निकल पड़ा इंडिया अपना जलवा बिखेरने।
जिस प्रकार आत्मा को अपना काम कराने हेतु एक शरीर की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार कोरोना को भी इंडिया पहुंचने के लिए एक माध्यम की जरूरत थी। और वह माध्यम बना अमित जो अपने बॉस से अजिज आ चुका था और उसे सबक सिखाना चाहता था। उसने ebay से चीन के वुहान नगर की हवा बॉस के एड्रेस पर आर्डर कर दिया।
बॉस के पैकेट खोलते ही कोरोना अपना काम चालू कर चुका था। पहले बॉस का विकेट गिरा, फिर बॉस का हालचाल लेने घर आने वाले चमचों का और फिर ऑफिस, पड़ोस, सब्जी और ओला उबर वालों से होते हुए ये जानलेवा जुकाम पूरे स्टेट को अपनी चपेट में ले लिया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से लेकर जिला अस्पतालों तक तो कोरोना वायरस को पता भी नही चला कि इंडिया में कोई हॉस्पिटल भी है। जो थोड़ा बहुत मेडिकल कालेजो में अपना समां बना सकता था, तो वहां भीड़ का आलम ये था कि भीड़ नियंत्रित करने के लिए PAC बल बुलवाना पड़ गया। PGI में हमेशा की तरह bed available नही थे तो प्राइवेटअस्पतालों में इलाज करने वाले इंसान। अपोलो और फोर्टिस जैसे अस्पतालों में आदमी कोरोना वायरस से कम और बिल देख कर ज्यादा मर रहे थे। वहीं मेडिकल कालेजों और अन्य सरकारी अस्पतालों में लोग घुटन और अव्यवस्था से। सारे नेता गण और बुद्धिजीवी अंटार्कटिका भाग गए और वहीं से एक दूसरे के ऊपर आरोप- प्रत्यारोप का प्रसारण करवाने लगे। सरकारी अधिकारियों को सख्त निर्देश था कि लोग मरें तो मरें पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश की छवि खराब नही होनी चाहिए। फिर क्या था, 1.3 अरब में से 1-2 करोड़ का आंकड़ा छुपाना कौन सी बड़ी बात थी। जो मौत के आंकड़े सामने आए उन्हें पिछली सरकारों में हुए ऑक्सीजन घोटालों से जोड़ दिया गया। किसी ने कोरोना को श्रेय ही नही दिया। गर्मी बढ़ चुकी थी और अब कोरोना वायरस की शक्तियां क्षीण हो चुकी थीं। अतः बोरिया बिस्तर बांध कर फाइनल रिपोर्ट के साथ कोरोना वायरस निराश मन से पुनः गोलमेज सम्मेलन में पहुंचा। उसकी यह दशा देख कर डेंगू मलेरिया वायरसों ने आपस में चुटकी ली - "चौबे गए थे छब्बे बनने और दुबे बनके आई गए।"
और इसके बाद कोरोना को टीप मारते हुए दोनों निकल पड़े अपने काम पर। आखिर उनकी ड्यूटी का टाइम जो हो चुका था।
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नीलेश मिश्रा






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