This is a collection of Original Creation by Nilesh Mishra
कहानी 91: फेलपोर्ट
कभी
पासपोर्ट ऑफिस गए हैं? जरूर गए होंगे या भविष्य में कभी न कभी जरूर
जाएंगे। बात उन दिनों की है जब आज की तरह पासपोर्ट बनवाना आसान नहीं हुआ करता था। उन दिनों कुछ चुनिंदा शहरों में ही इसके केंद्र हुआ करते थे।
वाकया मेरे दोस्त तरुण सिंह जी का है जो पेशे से एक प्राइवेट कम्पनी में इंजीनियर थे और
जल्द ही उनका विवाह कार्यक्रम सम्पन्न होने वाला था। कभी बातों बातों में
मॉरीशस का जिक्र हुआ तो भाभी जी से वादा कर दिए कि "डार्लिंग हनीमून वहीं
मनाएंगे"। सिंह साहब ने पासपोर्ट के लिए ऑनलाइन Apply किया औऱ slot बुक कर
लिया। नियत तिथि पर पूरा कोट पैंट टाई लगाकर एकदम Gentleman बन के पासपोर्ट
कार्यालय पहुंचे। पासपोर्ट कार्यालय इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में सरकारी
कार्यालयों की चिर परिचित छवि को झुठला रहा था। सिंह साहब बड़े प्रसन्न हुए -
आखिर राष्ट्रहित में मतदान जो किये थे। किंतु तभी वहां मौजूद सरकारी
बाबुओं पर उनकी दृष्टि पड़ी। सभी दीन दुनिया से विरक्त अपने कार्यो में
तल्लीन थे। वो अलग बात है कि वहां पूरे परिसर में उस दिन कस्टमर जैसे आदमी
वे ही दिख रहे थे। पहले तो उन्हें टोकन देकर Wait करने को कहा गया फिर जब 2
घण्टे बाद वे स्वयं काउंटर नम्बर 1 पर हालचाल लेने पहुंचे तो पासपोर्ट
ऑफिसर ने उन्हें ऐसी नजरो से देखा जैसे RTO ओवरलोडेड ट्रक ड्राइवर को देखता
है।
"कहाँ थे, इतनी देर से इन्तेजार कर रहा हूँ आए क्यों नहीं।" - पासपोर्ट ऑफिसर ने नम्रतापूर्वक तल्ख़ लहजे में कहा।
"सर मुझे पता ही नही चला, कोई आवाज तक नही दिया।"
"भाई साहब ऐसे पासपोर्ट बनवाते हैं भला! अब आपको कोई आवाज देने जाएगा। चलिए अब 3 दिन बाद आइयेगा। आपका Slot खत्म हो गया है।"
अरे पर सर - करके उन्होंने देख लिया पर आज वो पासपोर्ट ऑफिसर उनके लिए लार्ड डलहौजी से कमतर नही था।
3
दिन बाद फिर पहुंचे और इस बार पूरी तल्लीनता और एकाग्रता के साथ उन्होंने
अपने Quantam घड़ी से मिले हुए निर्धारित स्लॉट में पासपोर्ट ऑफिसर के सामने
अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
पासपोर्ट ऑफिसर ने आधार, पैन, एम्प्लॉयर आई कार्ड, फॉर्म 16 सब चेक कर लिया। औऱ फिर बोले "हाई स्कूल की मार्कशीट कहाँ है?"
"वो तो नही लाया"
"जन्मतिथि कैसे प्रमाणित होगी?"
"पैन आधार सब पर तो लिखा है"
"जी नही जो रूल में लिखा है वो लगाना पड़ेगा। तीन दिन बाद आइयेगा"
और
इस प्रकार सिंह साहब को कभी वोटर आईडी, कभी होने वाली बीवी से मार न खाने
का शपथपत्र इत्यादि नाना प्रकार के Documents की Deficiency दिखा कर हर तरह
से प्रताड़ित किया। किसी ने सलाह भी दी कि वो बाहर जो दुकान लगाता है वो
2-3 हजार extra लेकर आराम से बनवा देगा । पर "न खाऊंगा न खाने दूंगा" को
ब्रह्म वाक्य मान बैठे सिंह साहब ने अंततः सारी दुश्वारियों को झेलने के
बाद एप्लिकेशन सबमिट करवा पाने में सफलता हासिल कर ही ली। पुलिस वेरिफिकेशन
में चढ़ावा चढ़ाने से तो स्वयं ईश्वर भी खुद को नही बचा सकते , सो देना पड़ा।
पर 2 महीने बीत गए तब भी पासपोर्ट नही आया - इस बात से सिंह साहब काफी
विचलित हुए। जब पासपोर्ट विभाग में पूछताछ करने पर किसी ने ढंग से जवाब
देना उचित नही समझा तो क्षोभ में आकर उन्होंने By Post शिकायती पत्र,
PGPortal, Twitter पर टैगिंग, RTI और तदोपरान्त उनका 3-4 रिमाइंडर इत्यादि
सभी Grievance Handling तकनीकों का प्रयोग कर डाला पर भाई साहब का पासपोर्ट
नही आया। इस बीच शादी हो गई और शादी को 6 महीने भी बीत गए। भाभी जी के
मॉरीशस के ताने सुन-सुनकर भाईसाहब अवसाद में जा चुके थे। फिर एक दिन उनके
मोबाइल पर दिव्य सन्देश आया - "Your Complaint and RTI application has
been processed, Passport has been despatched vide Consignment
number...."
मैं उस दिन भाभी जी के हाथ की बनी चाय की
चुस्कियां ले रहा था और भाभी जी को नेपाल जाने की सलाह देने ही वाला था कि
सिंह साहब रोते हुए मेरे गले लग गए।
"भाई मेरा पासपोर्ट बन गया भाई, मेरा पासपोर्ट बन गया।"
उनके
आंसुओ से मेरी 300 रुपये वाली सफेद कमीज गंदी हो रही थी पर प्राइवेट आदमी
को सरकारी तंत्र के सामने इस तरह से पिघलता देख मेरा सीना अंदर ही अंदर
चौड़ा हो रहा था।
खैर अब तो मोदी जी ने जब पासपोर्ट बनवाने के लिए नए नियम लागू कर दिए हैं और लगभग हर शहर में इसे बनाने के केंद्र स्थापित हो चुके हैं। अब तो मुझे बड़ा भय होता है कि यार इस तरह से सरकारी काम इतनी सहजता से होने लग गए तो सरकारी कर्मचारियों की बची खुची इज्जत चली जाएगी। अब रौब किसपे झाड़ेंगे।और तो औऱ कहानी लिखने का नया टॉपिक कहाँ से आएगा।
खैर अब तो मोदी जी ने जब पासपोर्ट बनवाने के लिए नए नियम लागू कर दिए हैं और लगभग हर शहर में इसे बनाने के केंद्र स्थापित हो चुके हैं। अब तो मुझे बड़ा भय होता है कि यार इस तरह से सरकारी काम इतनी सहजता से होने लग गए तो सरकारी कर्मचारियों की बची खुची इज्जत चली जाएगी। अब रौब किसपे झाड़ेंगे।और तो औऱ कहानी लिखने का नया टॉपिक कहाँ से आएगा।
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नीलेश मिश्रा
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